युवा संदीप वागरेचा को गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जाएगाकिया जाएगा

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अर्पित चोपड़ा, खवासा 

खवासा मुक्तिधाम सौंदर्यीकरण में निःस्वार्थ रूप से सेवा देने और जनसहयोग जुटाने वाले खवासा के युवा संदीप वागरेचा को 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर सम्मानित किया जाएगा। गणतंत्र दिवस पर तहसील मुख्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में वागरेचा को प्रशासन सम्मानित करेगा।

उल्लेखनीय है कि बरसों से उपेक्षित पड़े खवासा के मुक्तिधाम पर संदीप वागरेचा अपने साथियों के साथ महती सेवाएं दे रहे है। कुछ समय पूर्व तक जरूरी सुविधाओं के लिए तरस रहे मुक्तिधाम परिसर में आज कई पौधे पेड़ बनकर लहलहा रहे है। यहां युवाओं की मेहनत व ग्रामवासियों, विधायक वीरसिंह भूरिया, जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत आदि की मदद से लकड़ी हॉल और श्रद्धाजंलि सभा स्थल बनकर तैयार हो चुका है। जनसहयोग से यहां बैठने के लिए लगभग 30 सीमेंट की कुर्सियां लगाई गई है। मुक्तिधाम परिसर में 6 हजार स्क्वेयर फ़ीट में जनसहयोग से पेवर्स लगाने के लिए तैयारी हो चुकी है जल्दी ही इसकी शुरुआत हो जाएगी। वागरेचा के साथ कमलेश श्रोत्रिय, रवि वागरेचा, बलराम बैरागी की भी भूमिका रही है। प्रशासनिक कार्य में विधायक प्रतिनिधि कमलेश पटेल एवं जनपद उपाध्यक्ष प्रतिनिधि प्रेमसिंह चौधरी, तात्कालिक सरपंच रमेश बारिया की भूमिका भी अहम रही है। संदीप वागरेचा का सहयोग इसमें इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है कि इन्होंने ग्रामवासियों और अपने परिचितों से अपने स्तर पर सम्पर्क साधकर उन्हें अर्थदान हेतु प्रेरित किया जिसका परिणाम यहां स्पष्ट दिखाई दे रहा है। वागरेचा ने सर्वाधिक समयदान करते हुए हर काम को पूर्ण करवाने में सहयोग दिया।

मद परिवर्तन की अहम लड़ाई

जिस भूमि पर खवासा के ग्रामवासी शवों का अंतिम संस्कार करते है पिछले कुछ ही साल पहले तक यह भूमि राजस्व रिकार्ड में शमशान मद में दर्ज ही नहीं थी। इस भूमि का मद परिवर्तन कर इसे राजस्व रिकॉर्ड में शमशान मद में दर्ज करवाने में कस्बे के कद्दावर नेता, विधायक प्रतिनिधि कमलेश पटेल और तत्कालीन सरपंच रमेश बारिया की भूमिका अहम रही है। सरपंच रहते रमेश बारिया द्वारा बनवाई गई बाउंड्रीवाल भी इसके विकास में मिल का पत्थर साबित हो रही है। इन दोनों ने ही अपने दम पर इस भूमि से अवैध कब्जा भी हटवाया। जिसके चलते ही मुक्तिधाम का यह सुंदर स्वरूप हम आज देख पा रहे है।

ये है नीव के पत्थर

मुक्तिधाम में मूलभूत सुविधाओं को जुटाने का कार्य सबसे पहले सन 1995 में शुरू किया गया था। सर्वप्रथम वरिष्ठ पत्रकार हेमंत चोपड़ा ने इसका जिम्मा उठाते हुए जनसहयोग से यहां अंतिम संस्कार हेतु एक शेड, पानी की टंकी, पशुओं के पानी पीने हेतु हौज और दो विश्राम स्थल बनवाए थे। इसके पहले यहां खुले आसमान के नीचे ही दाह संस्कार किया जाता था जिससे बारिश के समय खासी दिक्कतें आती थी। चोपड़ा के साथ बाद में हीरालाल जाट एवं ग्राम पटेल हीरालाल पटेल आदि भी इसमें जुड़े। 1995 में मूलभूत सुविधाएं जुटाने के लिए आगे आए इन लोगों की भी उल्लेखनीय भूमिका रही है।

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