मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
परमात्मा को वह अर्पित करना चाहिए जो हमें सबसे प्रिय हो, उन्हें आंसू रूपी फूल चढ़ाना चाहिए, जिससे हमारी स्थिति प्रभू को पता लग जाए।

उक्त संवाद आम्बुआ में आयोजित हो रही श्री मद्भागवत कथा के दौरान व्यास पीठ पर विराजमान पं० श्री शिव गुरु शर्मा ने उपस्थित जनसमूह के समक्ष व्यक्त करते हुए उन्होंने आगे बताया कि भगवान के अवतार प्रेम के कारण होता है। शिवजी ऐसे देवता हैं जिन्हें मानव देवी देवता तथा राक्षस सभी पूजते हैं। कथा में आगे मनु सतरूपा की कथा जिनकी दो संतानें प्रिय बृत तथा उत्तानपाद की कथा में उनकी दो पत्नियां सुनीति तथा सुरूचि जिनसे उत्पन्न ध्रुव जी की कथा की विस्तार से जानकारी दी जिन्होंने वन में तपस्या नारायण को प्रसन्न किया आगे धुंधकारी की कथा, के बाद ऋषभ देव तथा राजा भरत एवं हिरण के बच्चे में मोह बाद में हिरण के रूप में जन्म उसके बाद पुनः भरत जिन्हें जड़ भरत कहा गया,। आगे श्री शर्मा जी ने हिरण्यकश्यप तथा प्रहलाद की कहानी तथा भगवान के नरसिंह अवतार का वर्णन जिन्होंने ने भक्त की रक्षा हेतु हिरण्यकश्यप का उद्धार किया, तथा प्रहलाद को गले लगा लिया, तथा अभय का वरदान दिया।
