रस्सी पर चलकर नाबालिग कर रही अपने परिवार का गुजर-बसर
सरकार की योजनाएं नही दे पा रही इनको आसरा
झाबुआ लाइव के लिए पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट- जिदंगी इस का नाम है तो क्या जिना इन गानो के साथ 6 वर्षीय बालिका रस्सी पर चल कर अपने परिवार का पालन पोषण करने मे लगी हुई है किन्तु शासन प्रशासन कुंभ करण नींद सोया हुआ है।
मंशा सही पर लागू नही
प्रदेश के मुखिया शिवराजसिंह चौहान के द्वारा प्रदेश की कन्याओ के लिए कई प्रकार की योजनाए लागू कर रखी है और मप्र में इन योजनाओं की सफलता को देखते हुए राजस्थान व छत्तीसगढ़ में भी इन योजनाओ को लागू करने का निर्णय लिया है। वही गत 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर देश केे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा में चुनकर गई समस्त महिला सांसदों का अभिवादन किया तो कांग्रेस पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी द्वारा भी महिला आरक्षण विधायक पारित करने की अनिवार्यता पर बल दिया। इन सब के पीछे एक मात्र उद्ेश्य देश की महिलाओं और कन्याओं समेत छोटे बच्चों को संरक्षण देकर ठेठ पिछडे वर्ग से आने वाले छोटे छोटे बच्चो को देश की मुख्यधारा से जोडऩा है। किन्तु इन सब के बावजूद व आजादी के लगभग 68 वर्षो बाद भी हमारे देश मे नुक्कड़ पर अपना व अपने परिवार का पेट भरने के लिए छोटे छोटे बच्चों को रस्सी पर चलाकर करतब दिखाने का दौर आज भी जारी है।
नगर के गांधी चौक स्थिति बस स्टैंड क्षेत्र मे छत्तीसगढ से आए नट समाज की मात्र 6 वर्षीय बालिका गोपी द्वारा जब अपना करतब और खेल दिखाना प्रारंभ किया तो बडे बुजुर्गो समेत सैकड़ों की संख्या मे एकत्रित हुई भीड ने भी आश्चर्य के साथ अपने दांतो तले उंगली दबा ली।
शासन प्रशासन और राजनीतिक पार्टिया के द्वारा समय समय पर कई प्रकार से बालिकाअीं को और नाबालिको को मजदूरी एंव श्रम करवाए जाने के विरूद्व अभियान चलाया जाता है। वही कई निजी संस्थाओं व एनजीओ द्वारा छोटे बच्चो के सरंक्षण के लिए सरकार से लाखो करोड़ों रुपए अनुदान प्राप्त प्रतिवर्ष किया जाता है। किन्तु फिर भी इन सब प्रयासों के बावजूद अगर इस प्रकार से छोटे बच्चों के माध्यम से गरीब परिवार करतब दिखाकर अपना पेट भर रहा है तो कही नकही इन सब मे सरकार व प्रशासन की लापरवाही और उपेक्षा साफ नजर आती है और यदि सही मंशा के इन रूपयो का उपयोग किया जाता तो शायद अब हमारे देश मे इस प्रकार से छोटी बालिकाओ को करतब दिखाकर अपने परिवार का पेट भरने की नौबत नही आती।
कानून बने लेकीन लागू नही
नाबालिग बच्चों के श्रम एंव मजदूरी करने से रोकने के लिए हमारे देश मे कानून बना हुआ है साथ ही झाबुआ मे भी जिला स्तर पर श्रम विभाग को बाल मजदूरी पर रोक लगाने के लिए प्र्यापत निर्देश इस कानून के तहत है। किन्तु विभाग की और से पिछले एक वर्ष मे ऐसी कोई कार्रवाई नही की गई जबकी नगर में विभिन्न होटलो सहीत निर्माण ठेकेदारों के पास छोटे छोटे बच्चे मजदूरी करते हुए आसानी से देखे जा सकते है वही गरीब परिवारों के छोटे छोटे बच्चे कचरे मे से प्लास्टिीक व कबाडी का सामन बिन कर दो जून की रोटी की व्यवस्था करते है। चर्चा के दौरान यह भी पता चला की राज्य राज्य घुमने वाले ऐसे कई परिवार की न तो सरकार के पास कोई अतिकृत आंकड़े है न ही किसी भी प्रकार की कोई योजना का लाभ भी इन बच्चो को नही मिल पाता है।
क्या हो सकता है
यदि प्रशासन ईमानदारी के साथ कार्य करे तो महिला एंव बाल विकास विभाग और शिक्षा विभाग के माध्यम से इस प्रकार के बच्चों को पढने लिखने और अन्य सुविधाओं की व्यवस्था की जा सकती है। जिससे ये समाज से कटे हुए लोग पुन: मुख्य धारा से जुड सकें।