तप रूपी बाण से कर्म रूपी कवच भेद कर संग्राम जीता जाता है…प.पू महासती अनुपमशीला जी म.सा.

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रायपुरिया लवेश, स्वर्णकार

परम पूज्य महासती श्री अनुपम शीला जी ने श्रीमती आशा मुथा के मासक्षमण (31) के तप अनुमोदना मे फरमाया कि उत्कृष्ट भाव से किए गए तप उत्कृष्ट टप कहां है गुरुदेव ने आपने फरमाया के तप क्यों करना जीव स्वयं के द्वारा

बांधे कर्म को इस ओदारीक शरीर से उत्कृष्ट तपकर कर्मों को तोड़ता है तप दो प्रकार के होते हैं ब्हायतप,अभ्यांतर तप इसी प्रकार आहार भी तीन प्रकार के होतेहैं 1अपने घर का,2 मित्र के घर का,3 दुश्मन के घर का इसलिये सदा भोजन में विवेक रखें उपवास करना आत्मा का भोजन हैं प.पू महासती श्री महकश्री जी ने फरमाया कि भगवान महावीर स्वामी ने जन्म चौथे अरे में लिया था जहां पर सुख कम दुख ज्यादा और हमारा जन्म पांचवें आरे में हुआ यह दुखम आरा है जहां सुख मात्र की छाया है इस अवसर्पिणी काल को हुंडा अवसर्पिणी काल कहां गया है यह हमारी पुण्यवानी है कि हमें इस दुखमा आरे में भी जिणवाणी सुनने एवं धर्म करने का अवसर मिला है

आज की धर्म सभा में झाबुआ, इंदौर ,पेटलावद, जामली ,हमिरगढ़ बामनिया थाना सहित अनेक संघ के श्रावक श्रावीकाए उपस्थित रहे। श्रीमतिमुथा के बहुमान में 16,13, 9 उपवास से बोली लेकर मासक्षमण तपस्वी का बहुमान किया गया कार्यक्रम में अवनी मुथा ,खुशी मुथा ,अर्चना रनवाल, रश्मि रनवाल ,आकांक्षा चोपड़ा ने स्तवन की प्रस्तुति दी कार्यक्रम का संचालन एवं अभिनंदन पत्र का वचन संजय मुथा ने किया।

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