वर्षा पूर्व बेलों के पैरों में ठोकी जा रही नाल 

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

आगामी समय कृषक भाइयों के खेती किसानी का समय आ रहा है जिसकी तैयारी में कृषक जुट रहे हैं खाद बीज आदि के साथ ही खेती के औजार आदि दुरुस्त तो किए जा रहे हैं उसके साथ ही जो कृषक आज भी पुरानी पद्धति से यानी की बैलो से कृषि कार्य करते हैं वह बैलों की साज सवार के साथ ही उनके पांव में कीचड़ तथा खुरो में कांटे आदि न लगे इसकी सुरक्षा हेतु “नाल” लगवा रहे हैं।

             मिली जानकारी के अनुसार कृषि कार्य भले ही अब मशीनों (ट्रैक्टर आदि) से किया जाने लगा है मगर छोटे तथा गरीब परिवार आज भी कृषि कार्य बैलों के माध्यम से ही करते आ रहे हैं मशीनों से कार्य करने वालों को कुछ कार्य बैलों के माध्यम से भी करना होते हैं कृषकों को बैलों की चिंता रहती है बरसात में कीचड़ में चलते समय बैलों के पांव (खुरो) में नुकीले पत्थर, कांटे आदि न लगे इस बाबत उनके “खुरो” में लोहे की नाले ठोकी (लगाई) जाती है इन दिनों ऐसे नाल ठोकने वाले गांव-गांव घूम रहे हैं या फिर कहीं एक स्थान पर बैलों को एकत्र कर नाल लगा रहे हैं आम्बुआ में विगत 40 वर्षों से भी अधिक समय से आशिफ खान (नत्थू दादा) राजगढ़ वाले अपने साथियों के साथ प्रति वर्ष जून माह में आ जाते हैं तथा नाल लगाते हैं नाल ठोकना भी एक कला है बैलों को जमीन पर कैसे गिराना तथा बैल “लात” (पैर)ना मारे इसकी व्यवस्था करते हुए चारों पैरों के खुरों मे नाल इस प्रकार लगाई जाती है कि बेलों के खुरों के अंदर मांस में कील न गड़े केवल किनारे पर लगे जिससे बैलों को नुकसान न हो यह कार्य वही कर सकता हूं जिसको इसका अनुभव है आम्बुआ तथा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में नाल ठोकने वाले देखे जा सकते हैं बताते हैं कि वे प्रति बैल यानी कि 4 पैरों के 600 रुपए ले रहे हैं कृषक भी इन्हें ढूंढ कर अपने बैलों के खुरो में नाल लगवा रहे हैं यह कार्य वर्षा पूर्व पूर्ण हो जाएगा।

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