लापरवाही ने ली पेटलावद तहसील के 3 श्रमिको की जान; राजस्थान के कोटा में हुआ बड़ा हादसा

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झाबुआ। राजस्थान के कोटा में सफाई करते समय चार मजदूर 25 फीट गहरे सीवरेज टैंक में गिर गए। इनमें से तीन की मौत हो गई। यह तीन मजदूर झाबुआ जिले के पेटलावद तहसील के जुनापानी गांव के रहने वाले थे। हादसा मंगलवार शाम 4 बजे के बीच हुआ।
बताया जा रहा है कि कोटा के बालिता गांव में मंगलवार शाम को राजस्थान शहरी आधारभूत विकास परियोजना (आरयूआईडीपी) के तहत बने सीवरेज टैंक की चार मजदूर सफाई कर रहे थे। पांच मजदूर टैंक के बाहर खड़े थे। सफाई कर रहे मजदूरों की अंदर से कोई हलचल नजर नहीं आई तो बाहर खड़े मजदूरों ने अधिकारियों को सूचना दी। बाद में नीचे देखा गया तो चारों मजदूर अचेत अवस्था में पड़े थे। दो मजदूरों को टैंक में उतारकर चारों मजदूरों को रस्सी के सहारे बांध कर बाहर निकाला गया। इनमें से तीन मजदूरों कमल डामोर (25), गलियां गुंडीया (24), क्रिरे सिंह गुडिया (20) तीनो निवासी जूनापानी (पेटलावद, झाबुआ) की मौत हो चुकी थी। वहीं, अहमद गंभीर रूप से घायल था। तीनों मृतक यहां परिवार सहित रहते थे। मौत के कारणों की जांच की जा रही है। वहीं इस संबंध में अभी तक स्थानीय प्रशासन को कोई सूचना नहीं है।
तीनो मजदूरो की मौत का कारण प्रारंभिक तौर पर दम घुटना बताया है। सीवरेज चेंबर में कनेक्शन नही था। करीब 25 फीट लाइन में ढाई फीट कीचड़ था। कीचड़ के कारण जहरीली गैस (मिथिन गैस) बनी। नीचे ऑक्सीजन की कमी के कारण जो भी मजदूर नीचे उतरा वो बाहर नहीं निकल सका।
पुलिस ने मृतक कमल के भतीजे देवीलाल के परिवाद पर अहमदाबाद को हेतवी कंस्ट्रक्शन कंपनी व ठेकेदार कुलदीप सिंह के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है।
ऐसे मामलों में टेस्ट जरूरी
जानकारों की मानें तो ऐसे मामलों में पहले टेस्ट जरूरी होता है। गहराई में कीचड़ होने से जहरीली गैस बनती है। इसका पता लगाने के लिए पहले टेस्ट किया जाता है। लालटेन जलाकर उसको नीचे लटकाया जाता है। अगर लालटेन बुझ जाए तो पता लगता है कि नीचे ऑक्सीजन नहीं है। अगर लालटेन जलती रही तो नीचे उतरने का रिस्क लिया जा सकता है। यहां लापरवाही बरती गई। मजदूरों को नीचे उतारने से पहले टेस्ट नहीं किया गया। नीचे ऑक्सीजन की कमी थी। फिर भी चार लोग एक के बाद एक नीचे उतरे। तीन बाहर नहीं निकल सकें। इस कारण भी ऑक्सीजन की ओर कमी हो गई। नीचे उतरे तीनों मजदूर अचेत होकर कीचड़ में गिर गए। मजदूरों का मुंह खुला का खुला ही रह गया।

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