14 वर्ष के वनवास के बाद अपने परिवार के पास पहुंचा झाबुआ का कालू सिंह।।

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14 साल पहले घर से हुआ था गुम, असम के तेजपुर के मेंटल हॉस्पिटल (लोकप्रिय गोपीनाथ बोरदोलोई रीजनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ, तेजपुर) में था भर्ती।।
परिवार ने मृत समझ कर दिया था पिंड दान और तेरवी का कार्यक्रम।।

14 साल पहले झाबुआ से घूम हुए कालू सिंह की आखिरकार घर वापसी।।

मेघनगर झाबुआ के राजेंद्र श्रीवास्तव (नीरज ) व इंदौर के समाजसेवियों जितेंद्र सुमन, जय्यू जोशी, करीम पठान, सीमा सिंह की मेहनतके अथक प्रयासों का नतीजा

भटके बहुत,पर ज़िन्दगी को घर नहीं मिला
हारे ही सदा, जीत का अवसर नहीं मिला

दिल को मिले सुकून, इसके वास्ते हमें
चौखट मिलीं तमाम, मग़र दर नहीं मिला

कालू उर्फ़ कालिया उम्र लगभग 23 वर्ष, निवासी – जुलवनिया बड़ा, तहसील – थांदला, जिला – झाबुआ जो कि मई 2009 से घर से लापता था जब , घरवालों ने अथक प्रयास करने के उपरांत कही भी पता नहीं चलने पर थक हारकर उसका क्रियाकर्म तक कर दिया था एवं प्रभु इच्छा समझ उसे मृत समझ लिया था। कालू जो कि मानसिक चिकित्सालय तेजपुर आसाम मे भर्ती था, तेजपुर मेंटल हॉस्पिटल में बात करते समय हमारे सक्रिय जागरूक समाजसेवी जितेंद्र सुमन को पता चल की मध्यप्रदेश का एक लड़का काफी सालो से वाहा भर्ती हे, अभी तक उसके घर का पता नही निकल पा रहा, जितेंद्र सुमन और उनके महाकाल संस्था के साथियों एवं झाबुआ के समाजसेवी नीरज जी की जी तोड़ कोशिशों और परिश्रम के कारण उसके परिवार का पता लगा। पता लगने के उपरांत आज ठीक 14 वर्षो बाद वो अपने घर पहुंचा जहा रेलवे स्टेशन पर नीरज जी और नगर के गणमान्य नागरिकों द्वारा कालू और उसके परिवार का स्वागत किया गया।।

अकसर हम अपने आस पास दिखाई देने वाले मानसिक बीमारों को इग्नोर कर देते हे। अगर हम थोड़ा भी प्रयास करे तो शायद कालू जैसे कई बिछड़े लोगो को अपने घर से मिलवा सकते हे।।

वो 14 साल का समय इस मां और उस पिता के लिए कितना कठिन रहा होगा जिन्होंने अपने बेटे को देखे बिना उसे मृत समझ लिया था।।
आज उस परिवार के आशु पोंछ जीवन धन्य हो गया हम सब का।।

*पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी*

*फोटो में जो शख्स देख रहे हो उसकी कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं*

दरअसल इसका नाम कालुसिंह वसुनिया निवासी बड़ा जुलवानिया तहसील थांदला है जो विगत 14 वर्ष से घर से लापता था।

बात है मई 2009 की
जब कालुसिंह की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी तब वह रानापुर (जिला झाबुआ) के एक अस्पताल से इलाज के दौरान भाग गया था , घरवालों द्वारा ढूंढने के काफी प्रयास किए गए, काफी खोजबीन की गई परंतु यह शख्स नहीं मिला, 4-5 साल बीत गए घरवालों को मिलने की उम्मीदें कम हो गई ।

फिर एक दिन घरवालों को पता चलता है की कल्याणपुरा क्षेत्र में किसी विक्षिप्त का शव मिला और उसका अंतिम संस्कार पुलिस द्वारा कर दिया गया, उस क्षेत्र के लोगों द्वारा बताए गए कुछ पहचानो से घरवालों को लगा शायद यह उनका बेटा था और वह अब दुनिया में नहीं है।
उसी शव को संभवतः उनका बेटा मानकर इंसान के मर जाने के बाद की जाने वाली सभी रस्में घरवालों द्वारा कर दी गई, यहां तक की उसका नुक्ता वगेरह भी कर दिया गया ।

परिवार कालूसिंह को भूल चुका था, किसी को यह उम्मीद नहीं थी की वह वापस आएगा, परंतु उसकी मां जो बार बार यही कहती थी की मेरा बेटा आएगा….मेरा बेटा आएगा…..लोग कहते थे ये औरत बेटे के गम में पागल हो गई है लेकिन कहते है न की मां की जान उसके बच्चों में बसती है, भगवान ने भी शायद सुन ली उस मां की दुआ…..।

2023 आ चुका होता है,
फिर एक दिन सोशल मीडिया एवं बाणगंगा मानसिक चिकित्सालय इंदौर में पदस्थ नर्सिंग ऑफिसर जितेंद्र सुमन जी तथा नीरज जी श्रीवास्तव(सामाजिक कार्यकर्ता, मेघनगर झाबुआ) के माध्यम से घरवालों को पता चलता है की कालुसिंह जिंदा है और असम प्रदेश के किसी मानसिक चिकित्सालय में भर्ती है, पहले तो परिवार वालों को यकीन नहीं होता है, फिर उसकी फोटो भेजी जाती है, वीडियो कॉल के जरिए उससे बात की जाती है फिर यकीन होता है ।

परिवार वाले सब खुश हो जाते है, बातें चलती है मानो चमत्कार हो गया हो, फिर घरवाले उनको असम लेने जाते है, कालुसिंह कुछ लोगों को पहचान लेता है और कुछ परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाता है ।
4 मई 2023 को कालुसिंह अपने घर आ जाता है ।

14 वर्ष बाद जब मां को उसका बेटा मिल जाता है, और वो बेटा जिसको दुनिया भूल चुकी थी, उसे पाकर वो खुशी के आंसू रोती है मां बेटे का यह प्यार देखकर वहां मौजूद परिवार के अन्य सदस्यों के आंखो में भी आंसू आ जाते है ।
कालुसिंह से मिलने उसका पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता है और उसे देखकर सब यही बोल रहे होते है की यह तो चमत्कार हो गया ।
कालुसिंह की घर वापसी में नीरज जी श्रीवास्तव मेघनगर, जितेंद्र सुमन जी इंदौर का सराहनीय योगदान रहा परिवारजन ने उनका धन्यवाद किया ।

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