और अब शिक्षण संस्थाओं में साइकिल नहीं मोटरसाइकिल स्टैंड की जरूरत

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

समय परिवर्तनशील कहा जाता है। पूर्व समय के अनुसार शैक्षणिक संस्थाओं में छात्र-छात्राएं कई किलोमीटर दूर से पैदल आकर शिक्षा ग्रहण करते थे, फिर साइकिलों से और अब मोटरसाइकिल से आ जा रहे हैं। जिस कारण संस्थाओं में बाइक स्टेन्डों की जरूरत महसूस की जाने लगी है। साथ जो अवयस्क बाइक चालक बाइक आने-जाने में उपयोग कर रहे कर रहे हैं उनके कानूनन लाइसेंस भी जरूरी करने चाहिए। अन्य यातायात नियमों की जानकारियां जो कि समय समय पर दी जाती है उसका पालन कराना भी जरूरी है।

इन दिनों छोटी शिक्षण संस्थाओं में बच्चे भले ही पालकों के साथ आते हो मगर माध्यमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षण संस्थाओं में छात्र-छात्राएं दोपहिया वाहनों यानी कि बाइक से आना-जाना कर रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक शिक्षण संस्थाओं में साइकिल स्टैंड हुआ करते थे जहां पर छात्र-छात्राएं तथा शिक्षक साइकिल खड़ी करते थे। वर्तमान में एक स्तर तक के छात्र-छात्राओं को शासन की ओर से साइकिलें दी जा रही है मगर देखा जा रहा है कि माध्यमिक स्तर से ऊपर के छात्र-छात्राओं से मोटरसाइकिल लाना अधिक पसंद कर रहे हैं, फिर भले ही पालको को कर्जा कर या उपज बेच कर इनकी व्यवस्था क्यों न करना पड़े। बढ़े हुए पेट्रोल के भाव भी इन पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहे हैं, यही नहीं यह यातायात के नियमों को प्रतिदिन नहीं अपितु प्रति मिनिट तोड़ते देखे जा सकते हैं। हाई सेकेंडरी स्तर तक के अनेक अवयस्क वाहन चालक दो पहिया वाहन पर तीन चार और कभी-कभी पांच सवारियों के साथ बाजारों तथा सड़कों पर फर्राटा भरते दिख जाएंगे। इन बाइकों को शिक्षण संस्थाओं में खड़ी करने हेतु स्टैंड की जरूरत के साथ ही प्रशासनिक स्तर पर के अवयस्क चालकों को समझाइश तथा नहीं मानने पर दंडात्मक कार्यवाही अवयस्कों के साथ-साथ पालकों पर करना जरूरी माना जा रहा है ताकि इन्हें किसी दुर्घटना से बचाया जा सके।

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