ऐतिहासिक चातुर्मास कल्प पूरा कर गुरुदेव ने खवासा कि ओर किया विहार

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थांदला। चरम तीर्थंकर श्रमण भगवान की आज्ञानुसार जैन संत – सतिया वर्षाकाल में सबसे बड़े चातुर्मास कल्प को पूरा कर विहार कर देते है। झाबुआ विराजित प्रवर्तक श्रीजिनेन्द्रमुनिजी आदि ठाणा के कदम जहाँ थांदला कि ओर बढ़े वही थांदला विराजित उन्ही के आज्ञानुवर्ती स्वाध्याय प्रेमी पूज्य श्री चन्द्रेशमुनिजी एवं सेवाभावी पूज्य श्री सुयशमुनिजी आदि ठाणा – 2 का विहार खवासा कि ओर हो गया। गुरुभगवंतों के अथक परिश्रम व पावन प्रेरणा से थांदला श्रीसंघ में ज्ञान दर्शन चारित्र व तप की ऐतिहासिक आराधना हुई। इस बार गुरुभगवंतों के पास बच्चों से लेकर 70 वर्षीय प्रौढ़ श्रावकों ने भी 100 से अधिक थोकड़ों को सिखा वही चातुर्मास के शुरुआत में ही अनेक प्रकार की मर्यादाओं के प्रत्याख्यान ग्रहण कर मासक्षमण हुए। गुरूदेव के उपकारों के बदले अनेक श्रावक श्राविकाओं ने अंतिम दो दिवस बेले तप की आराधना की वही अंतिम दिन पौषध दिवस के रूप में मनाते हुए श्रावक वर्ग गुरुदेव के पास रहे वही श्राविकाओं ने भी महिला स्थानक में रहकर पौषध तप की आराधना की। इस अवसर पर सभी तपस्वियों के पारणें का लाभ अशोक कुमार बाबूलाल तलेरा ने लिया वही विहार में शामिल गुरुभक्तों के आतिथ्य सत्कार का लाभ स्व. राजलबाई गादिया की स्मृति में गादिया परिवार द्वारा नेचरलगोल्ड पर लिया गया।

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