मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ
परमात्मा बहुत दयालु है वह अपने भक्तों को ना जाने कब और कितना दे दे यह वही जानता है भक्तों को हमेशा ही भगवान के सामने सोच समझकर मांगना चाहिए वैसे तो वह बिन मांगे ही अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करता है वह मानव को बेहिसाब अनगिनत उपहार देता है मगर हम उसका नाम स्मरण भी करते हैं तो गिन कर करते हैं यानी की माला के मनका द्वारा करते हैं हमें भी उसका नाम बगैर संख्या के अनंत रूप में करना चाहिए।

उक्त उद्गार आम्बुआ में सांवरिया धाम पर हो रही श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिवस उन्हेल (उज्जैन) से पधारे कथा प्रवक्ता विद्वान पंडित श्री शिव गुरु शर्मा ने अपनी रस मयी वाणी से व्यक्त करते हुए आगे आज भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया ब्रज में जैसे ही पता चला कि नंद बाबा के यहां लाला ने जन्म लिया है सारा ब्रजमंडल उनके महल पर बधाई देने पहुंचने लगा यहां पर कृष्ण जन्मोत्सव लगभग छः माह तक दिन-रात चलता रहा जिसमें यशोदा माता ने मनचाहा उपहार हाथी, घोड़े, हीरे मोती और ना जाने कितना उपहार बांट दिया कृष्ण भगवान के अवतरण की खबर जैसे ही भगवान शिव को मिली वह नंद बाबा के महल जा पहुंचे जहां पर मां यशोदा उनका रूप देखकर कृष्ण के दर्शन कराने से मना कर दिया तब भगवान शिव गांव के बाहर हट करके बैठ गए इधर श्रीकृष्ण ने रोना चालू कर दिया लोगों के समझाने पर मां यशोदा भगवान शंकर को मना कर लाई तथा लाला का दर्शन शिवजी को कराया।
