भगवत कृपा होने पर जीव सांसरिक बंधनों से मुक्ति पाता है : आचार्य श्री
पेटलावद से हरीश राठौड़ की रिपोर्ट- प्रभु प्रत्यक्ष रूप से प्रकट हो जाये फिर भी ध्यान की आवश्यकता बनी रहती है। ज्ञानदीप प्रकट होने के बाद भी एकाध इन्द्रिय द्वारा खुला रह जाने पर विषयरूपी हवा ज्ञान दीप को बुझा देती है। जीवन में जब भगवत कृपा प्राप्त होती है, तो जीव सांसारिक बंधनों से मुक्ति पा सकता है। यह बात भागवत भूषण आचार्य डॉ देवेन्द्रजी शास्त्री ने महाकाली तीर्थ धाम पर आयोजित भागवत कथा के पांचवे दिन अपार जनसमुदाय के समक्ष व्यक्त किये। आचार्यश्री ने गोपियों के प्रेमभक्ति एवं श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं की सुमधुर व्याख्या की। आचार्यश्री के श्रीमुख से निकले गोपी गीत के संस्कृत काव्य एवं उसके भावार्थ को सुनकर पांडाल कृष्ण कन्हैयालाल के जयकारों से गूंज उठा। आचार्यश्री ने दान महिमा का वर्णन बताते हुए कहा कि यदि प्रभु ने तुम्हें सम्पत्ति दी है तो संकल्प करो कि हर रोज सुपात्र साधु एवं गरीबों-दीन दुखियों को भोजन करवाएंगे। जीवन में एक बार ब्रज चौरासी की परिक्रमा करने से जीवन के सारे पाप कर्म धुल जाते है। कथा आरंभ के समय पुज्य आचार्यश्री का स्वागत महाकाली सेवा संस्थान के अरविंद कुशवाह रतलाम परिवार ने किया। भागवत कथा के दौरान फूलों की होली एवं वनवासी भाइयों द्वारा भगौरिया नृत्य की वेशभूषा के साथ प्रस्तुति आकर्षण का केन्द्र रही।