1883 में संप सभा के गठन से शुरू हुआ आंदोलन जिसमें 1500 भील शहीद हुए, वह भारत की आजादी के लिए ही देशभक्ति आंदोलन था – श्री अर्जुन राम मेघवाल

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नवनीत त्रिवेदी@झाबुआ

स्वातंत्र्य योद्धा वीर बलिदानियों की भूमि मानगढ़ पर्वत को राष्ट्रीय स्मारक तथा आजादी के प्रयास में जीवन की आहुति देनेवाले वीरों की यशोगाथा को नई पीढ़ी में पूर्वजों की कहानिया पाठ्यपुस्तकों में शामिल करने के प्रयास में एकत्रित भील स्वाभिमान यात्री। मानगढ़ स्वाभिमान यात्रा में 350 गाओं से 200 चार पाहिया वाहन लेकर आये सभी तीन हजार भील माता, बहन, भाई आलीराजपुर और झाबुआ से 7 मई को पहुँचे और 8 मई को वहाँ से वापस आये।

इस यात्रा में विशेष रुप से शामिल हुए अतिथि : 

श्री अर्जुन राम मेघवाल, संसदीय कार्य एवं संस्कृति मंत्री, भारत सरकार

श्री तरुण विजय, प्रमुख राष्ट्रीय संस्मारक प्राधिकरण, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार

श्री कनकमल कटारा, सांसद, बाँसवाड़ा, राजस्थान सरकार

श्री कुबेर सिंह डिंडोड, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री, गुजरात सरकार

श्री रामसिंह भाई राठवा, अध्यक्ष ट्राईफेड, भारत सरकार

प.पू. क़ानूराम जी महाराज, संत झाबुआ

श्री रामसिंह भाई मेढ़ा, सामाजिक नेतृत्व, झाबुआ

श्री भीमा भाई, सामाजिक नेतृत्व, झाबुआ

श्री शांतिलाल निनामा, अध्यक्ष भील सेवा मंडल

पद्मश्री श्री महेश शर्मा, शिवगंगा झाबुआ

7 मई 2022

प्रातः 8 बजे अपने-अपने गाओं से यात्री गोविंद गुरु के समाधि स्थल कम्बोई धाम के लिए रवाना हुए, उल्लेखनीय बात यह है सभी यात्रियों ने 500/- शुल्क देकर अपने वाहन की व्यवस्था स्वयं की। 

दोपहर 12-3 बजे, कम्बोई धाम में सभी यात्रियों ने जलपान किया और आगे की यात्रा की तैयारी के लिए एक बैठक की जिसमें यात्रा के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें बताई गई। 

शाम 5 बजे यात्रा भीलों के बलिदान के ऐतिहासिक स्थल मानगढ़ पर्वत पर पहुँची। 

शाम 6-8 धरम सभा हुई जिसमें शिवगंगा प्रमुख कार्यकर्ता श्री राजाराम कटारा ने भूमिका रखते हुए कहा मानगढ़ पर्वत पर हुआ बलिदान जिसपर न केवल भील, न केवल पूरा जनजाति समाज अपितु पूरा भारत गर्व कर सकता था उससे हम वंचित हुए। निश्चित रूप से कांग्रेस स्वतन्त्रता सेनानियों का मंच बनी परंतु उससे भी पहले संप सभा गठित हुई जिसके प्रस्ताव के 9 सूत्रों में पहले ही सुत्र में अंग्रेजों को लगान ना देकर विरोध करने की बात कही और गाँव गाँव मे भीलों ने इसका पालन किया। महात्मा गाँधी जी का अहिंसा आंदोलन पूरे विश्व मे ख्यात है लेकिन गाँधी जी के अफ्रीका से भारत लौटने के भी 2 वर्ष पूर्व 1913 में इतना बड़ा अहिंसा आंदोलन चल रहा था जिसे अंग्रेजों ने दमन चक्र द्वारा रोका जिसमें हजारों भील बलिदान हुए। इतना बढ़ा बलिदान क्षेत्र भारत सरकार, राज्य सरकारों, सामाजिक बुद्धिजीवियों, नीति नियंताओं की आँखों से ओझल कैसे हो गया?

आज हम उसी भूल को सुधारने के लिए हज़ारों की सँख्या में यहाँ उपस्थित हुए और भारत सरकार से माँग करते हैं कि मानगढ़ पर्वत को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाए और भीलों बलिदान की यह गाथा पूरी तथ्यात्मक जानकारी के साथ शैक्षणिक पाठ्यक्रम में शामिल हो जिससे आगे आने वाली पीढ़ियों में स्वाभिमान की प्रेरणा ले सकें।”

महेश शर्मा ने भीलों के बलिदान की गौरव गाथा सुनाई, आजादी के इस संघर्ष के महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की और ध्यान दिलाया जिन्होंने 1913 के बाद हुए स्वन्त्रता संग्राम को नई दिशा दी। 

श्री अर्जुन राम मेघवाल ने पूरा विषय सुनकर सहमति देते हुए अपने वक्तव्य में कहा, “1883 में संप सभा के गठन से शुरू हुआ यह आंदोलन भारत की स्वतंत्रता के लिए ही देशभक्ति का आंदोलन था।” उन्होंने उस समय के प्रसिद्ध गीत:

“भुरेटिया नई मानु रे, नई मानु रे, 

अहमदाबाद मारी कलमी है, दिल्ली मारी गादी है

भुरेटिया नई मानु रे, नई मानु रे” 

को संदर्भ लेते हुए कहा कि 

“उस समय भीलों ने अंग्रेजों की सत्ता को नहीं स्वीकारा, और दिल्ली को भी छोड़ने के लिए ललकारा, तो था तो यह आजादी का ही आंदोलन और इसका उल्लेख नहीं किया गया। भारत की स्वतंत्रता में ऐसे अनेक वीरों का बलिदान है जिनका उल्लेख नहीं है, उनमें मानगढ़ पर भीलों का बलिदान सर्वोच्च शिखर पर है। और इसको राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए हम प्रधानमंत्री को प्रस्ताव देंगे और हमें पूरा विश्वास है कि यह राष्ट्रीय स्मारक घोषित होगा। उन्होंने इसके लिए कार्य योजना भी बताई जिसमें एक फ़ेलोशिप के माध्यम से संस्कृति मंत्रालय गाँव-गाँव में सर्वे कर बलिदानी परिवारों का जानकारियां लेंगे।”

8-12 : भोजन के बाद सांस्कृतिक उत्सव हुआ जिसमें विभिन्न पारंपरिक नृत्य ढोल-मांदल, मुड़ा नृत्य, छल्ला की प्रस्तुति हुई और सभी लोगो ने भाग लिया। 

8 मई 2022 प्रातः 6:30-8 बजे की सत्संग सभा में प.पू. क़ानूराम जी महाराज, पद्मश्री महेश शर्मा जी और श्री अर्जुन राम मेघवाल जी ने प्रेरणास्पद विचार बताएं। 

9 से 10:30 समापन सभा हुई जिसमें समस्त भील समाज की ओर से मानगढ़ पर्वत को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने और इस भील बलिदान गाथा को शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने के उद्देश्य से बनाये गए ज्ञापन का श्री कनकमल कटारा ने वाचन किया और श्री अर्जुन राम मेघवाल को सौंपा। श्री अर्जुन राम मेघवाल जी ने ज्ञापन स्वीकारते हुए सभी यात्रियों से कहा,

“यह यात्रा ऐतिहासिक है, आपका आना सार्थक होगा और मानगढ़ पर्वत राष्ट्रीय स्मारक घोषित होगा। आप सभी यात्री भी मानगढ़ बलिदानियों के समान सम्मानीय और वंदनीय हैं।

श्री महेश शर्मा ने भीलों की गलत छवि को लेकर अपने मन की पीड़ा व्यक्त की और अनेक ऐसी घटनाओं की अनुभूतियाँ साझा की। उन्होंने कहा हिंदुस्तान इस बात को जानता नहीं कि भगवान श्री राम ने जिसके पैर छुए वो भील थे, इस बात को हिंदुस्तान भूल चुका है, वह भूल चुका है किसको भुलाना और किसको याद रखना, तब मेरे मन में यह बात आई कि भारत की प्रगति हो ही नहीं सकती तब तक जब तक इन भीलों को सम्मान नहीं मिलेगा। भारत पिछड़ा ही रहेगा क्योंकि इनके जीवन में त्याग बलिदान, ज्ञान और अध्यात्म से जब तक भारत परिचित नहीं होगा तब तक भारत में सुख-शांति नहीं आ सकती। अंत मे उन्होंने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया।

समापन सभा के बाद सभी यात्रियों ने मानगढ़ पर्वत का भ्रमण किया, संप सभा की धूणी, संघर्ष की चित्र कथा, और संग्रहालय देखते हुए विजय स्तम्भ पर पहुँचे वहाँ श्री राजाराम कटारा ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि यह मिट्टी हमारे पावन है और हमारा स्वाभिमान है। अंत में सभी ने मानगढ़ पर्वत की पावन मिट्टी से एक दूसरे को तिलक किया। दोपहर 12 बजे सभी ने भोजन पैकेट लेकर झाबुआ के लिए प्रस्थान किया। 

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