प्रशासन की ये कैसी हिटलरशाही… व्यवस्था हो नही पाई और कार्यवाही का दबाव बनाकर शुरू करवा दिया स्लाटर हाउस

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सलमान शैख़@ झाबुआ Live

पेटलावद का प्रशासन इन दिनों अपना तुगलकी रवैया अपनाए हुए है। यह तुगलकी रवैया नगर के मांस-मछली-चिकन विक्रेताओं पर भारी पड़ता नजर आ रहा है। उनके साथ जो अन्याय हो रहा है उसकी तरफ नजर किसी की नही जा रही है और बस अपनी वाहवाही के लिए उल्टा व्यवसाईयों को एक बड़ी परेशानी में धकेल दिया गया है।

दरअसल, मामला नगर के पंपावती नदी किनारे बने स्लाटर हाउस का है। यहां एक तो प्रशासन संपूर्ण व्यवस्था करा नही सका, फिर अपनी नाकामियों का ठीकरा इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों पर फोड़कर उन पर कार्यवाही का दबाव बनाकर उन्हें जैसे-तैसे हालात में वहां बिठा दिया और नगर में वाहवाही लूट रहा है। हालांकि कुछ मटन-मछली विक्रेताओ ने वहां दुकान भी लगाई, लेकिन व्यवस्था न होने से नाराज दिखे ओर नगर प्रशासन को कोसते रहे।
कमेला और टँकी नही बनी-
नगर प्रशासन को यहां हर मटन विक्रेता को कमेला बनाकर देना था, जो वह बैठक के 20 दिनों बाद भी नही बना पाई। मटन विक्रेता मुन्ना कुरैशी, जाकिर कुरैशी ने बताया हमे अगर बकरा काटना है तो हम कहां काटेंगे और कहां ग्राहक को बिठाएंगे। जबकि बैठक में सारी व्यवस्था देने की बात प्रशासन ने की थी, लेकिन वह तो हुआ नही ओर हमें यहाँ कार्यवाही का डर दिखाकर बिठा दिया। चिकन विक्रेता कालू, जफर और शाहरुख ने बताया मुर्गे-मुर्गियों को काटने के लिए सबसे पानी की जरूरत होती है लेकिन यहां उनके लिए भी कोई टँकी प्रशासन नही बना सका। सभी ने नगर प्रशासन पर जानबूझकर मानक पूरे न करने का आरोप लगाया।
स्लाटर हाउस के लिए बने है नियम-कायदे-
स्लॉटर हाउस कैसा हो इसके लिए भी तमाम नियम हैं। वहां पशुओं को लाने-ले जाने से लेकर कटान तक के नियम बने हुए है, लेकिन इन नियमों की यहां सरेआम धज्जियां उड़ती दिखाई देगी और फिर यही प्रषासन इन्हीें नियमों का हवाला देकर इन छोटे व्यवसाईयों पर कार्रवाई करेगा। नियमों की अगर बात की जाए तो स्लॉटर हाउस में हवा के पर्याप्त इंतजाम होने चाहिए। दीवारें साफ होनी चाहिए, लेकिन यहां दीवारे प्रशासन बना ही नही पाया। आम रास्ते से सबकुछ यहां खुलेआम ही दिख रहा है। फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अधिनियम 2006 के तहत मीट को खुले में नहीं रखा जाएगा, लेकिन यहां तो सबकुछ खुले में ही दिख रहा है। स्लॉटर हाउस पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए, लेकिन रहवासी इलाका होने के कारण यहां आसपास का वातावरण इस स्लाटर हाउस से दूशित होना ही है। जल प्रदूषण निवारक अधिनियम के तहत कोई भी अवशेष लिक्विड सीधे तौर पर नालियों में या कहीं और नहीं जाएगा, लेकिन यहां नजदीक ही पंपावती नदी है और एक नाला जो इसी नदी में जा रहा है, जिसके उपर ही यह स्लाटर हाउस बना है। यहां से सारी गंदगी नाले से होकर नदी में जाना ही है। जिससे नदी और प्रदूशित होगी। वायु प्रदूषण निवारक अधिनियम के तहत आसपास बदबूदार हवा नहीं फैलने पाए, लेकिन जब मटन-मछली और चिकन तीनों यहां कटकर बिकेंगे तो कितनी बदबू फैलेगी यह सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
कारोबारी बोले, बाद में हम पर ही होगी कार्रवाई-
मीट व्यापारी कादर कुरैशी, नबू कुरैशी का कहना है कि यह संभव ही नहीं है कि सभी नियमों का सही तरीके से पालन किया जा सके। हवादार स्लॉटर हाउस हों तो यह कैसे हो सकता है कि बदबू बाहर न जाए? इस तरह से बिना व्यवस्था के हम कैसे वहां शिफ्ट हो सकते है। हमारे उपर प्रशासन का ऐसा दबाव ये कहां का न्याय है। हमें हमारी व्यवस्था करकर दे दो हम जाने को तैयार है।
अन्य शहरों जैसा बने नया स्लाटर हाउस-
इस स्लाटर हाउस में सबसे बड़ी कमी यह है कि यह नगर परिशद द्वारा बनाया ही गलत स्थान पर है। जबकि नियमों के अनुसार स्लाटर हाउस होना था नगर की सीमा से 100 मीटर की दूरी पर, लेकिन नपं ने जल्दबाजी में स्लाटर हाउस के नाम पर सिर्फ छोटी-छोटी 13 दुकानों का निर्माण कर दिया। जबकि एक दुकानें बड़ी-बड़ी बनना थी और उसी दुकान के पीछे हर व्यवसाई का अपना पषु कटनी के लिए एक कमेला होना था, लेकिन नपं ने यहां एक भी मानक पूरे नही किए। जिसका खामियाजा अब इन छोटे व्यवसाईयो को भुगतना पड़ रहा है। इन छोटी-छोटी दुकानों में क्या तो ये पशु की कटनी करेंगे और क्या अपने ग्राहक को बिठाएंगे और क्या खुद माल रखकर बैचेंगे।

एसडीएम IAS शिशिर गेमावत बोले- मैं सभी व्यवस्था स्लाटर हाउस में करवाने का मीट-चिकन और मछली विक्रेताओं को आश्वासन देता हूँ। धीरे-धीरे सारी व्यवस्थाए हो जाएगी। बस आप सभी प्रशासन के साथ सकारात्मक भाव रखे। हम किसी भी व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों का बुरा नही चाहेंगे। जो-जो कमी है उसे व्यापारी मुझे मिलकर बता देवे। मैं नपं के माध्यम से इसे पूरा करवाऊंगा।

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