समाजिक कुरीतियों को जड़ से मिटाने की जरूरत, क्यों नहीं लग पा रहा दहेज प्रथा पर अंकुश ?

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दहेज प्रथा पुराने इन गलत रीति रिवाजों को छोड़कर अब हम समाज को उस नई दिशा में ले जाने का प्रयास करने जहां शिक्षा के बल पर हमारी पहचान बने,समाजसेवा के क्षेत्र में कुछ नया करें समाज को जागरूक करने की दिशा में कुछ ऐसे कदम उठाएं जिससे सभी शिक्षित होकर राष्ट्र में अपना नाम रोशन कर सकें हर समाज कुछ न कुछ सामाजिक बदलाव कर चुकी है और कुछ करने वाली है। सभी समाजों में सबसे ज्यादा शिक्षा व महिलाओं को समाज में पुरुषों की तरह सम्मान देने को लेकर बदलाव किए गए है। कुछ समाजों ने दहेज लेना देना बंद कर दिया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि समाज में सभी वर्ग के लोग खुशी जाहिर कर सके व अमीरी-गरीबी का भेदभाव दूर हो।

जैसा कि आप सभी प्रजापति भाइयों को ज्ञात हैं कि हमारे प्रजापति समाज में बेटे बेटियों के विवाह में पुरानी रीति अनुसार जो हमारे बुजुर्गों के समय से चली आ रही दहेज प्रथा आज से लगभग चालीस से पचास वर्ष पूर्व 300/-से 400/- रुपए थी जो धीरे धीरे लोगों की लालच के बढ़ने से बढ़कर लाखों में चली गई उसके पश्चात इस दहेज की सीमा को अंकुश लगाने के लिए समाज के कुछ वरिष्ठ एवम् बुद्धिजीवी लोगों ने राणापुर सीतला माता मन्दिर प्रांगण पर आज से 18 वर्ष पूर्व एक सकल पंच की बैठक की गई थीं जिसमें पूरे परगने के गावों से पंच और उनके पटेल को आमंत्रित किया गया था जिसमें राणापुर (गणेश पटेल), आलिराजपुर (शांतिलाल जी पटेल, नारायण पटेल), जोबट (सबुर जी पटेल), मेघनगर (खुसाल जी पटेल), नानपुर (बाबूलालपटेल), भाभरा (लूणाजी पटेल), आम्बुआ (फकीरा जी पटेल), उमराली (रमण पटेल), बोरी (पुनाजी पटेल), कल्याणपुरा (शांतिला पटेल), बोरझाड़ (नारायण  पटेल), खट्टाली (मदन जी पटेल), झाबुआ पटेल, हरीनगर, बरझर, परवलिया, पिटोल, कुंदनपुर, मदरानी, थांदला, काकनवानी, आदि सभी के पटेल एवम् पंच के वरिष्ठ लोगों द्वारा सर्व सम्मति से दहेज प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए इसका 21 हजार रुपए निश्चित किया था । लेकिन पिछले पांच से सात वर्षों से लगातार लोगों की लालच बढ़ने लगीं और समाज के कुछ लोगों के द्वारा आज दहेज को 8 से 10 लाख रुपए पहुचा दिया गया हैं , ये लालच ये कुरीति इक आग की तरह पूरे प्रजापति समाज में फेल गई हैं जो हमारे समाज के गरीब और निर्धन लोगों को पूरी तरह बर्बाद करने के मौड़ पर खड़ी हैं।। अभी भी वक्त हैं इसे रोका जाए।। दुख की बात यह हैं कि इन दहेज लेने देने वालो के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं होने के कारण कोई कार्यवाही नहीं होती हैं क्योंकि समधी समधी आपस में लेन देन की बातें कर लिया करते है । मामला तब उजागर होता हैं जब उनके आपसी रिश्तों में कोई मनमुटाव आता हैं या तलाक की नौबत आने पर इनके द्वारा कबूला जाता हैं की उस पक्ष ने इतने रूपए लिऐ थे उससे पहले कोई बात को इनके द्वारा बताया नहीं जाता हैं ।। इस प्रकार से यह दहेज प्रथा अपनी जड़े जमाए
हुए हैं इस कुरीति को हमारे समाज से ख़त्म करने में सभी प्रजापति युवाओं से हम आव्हान करते हैं की आगे आएं और इसे जड़ सहित उखाड़ फेंके।।
कहने के लिए बस मैं बेटी हूँ।पर असल में, मैं पैसों की पेटी हूँ। दहेज लेकर भी, लोग हमारी देह तक जला देते विवाह संबंध दो आत्माओं का पवित्र गठ बंधन है।पर ना समझो के लिए, यह बस पैसों का प्रबंध हैं

दहेज प्रथा को जड़ से मिटाना हैं। दहेज प्रथा को जड़ से मिटाना हैं। अब एक कदम भी पीछे नहीं हटाना हैं। आप सभी युवा वर्ग हमारा सहयोग करे हम हर संभव प्रयास का आश्वासन देते हैं । मोहन शांतिलाल पटेल- प्रजापति पटेल एवम् प्रजापति समाज जिला उपाध्यक्ष जिला-आलिराजपुर। राकेश  प्रजापति,प्रजापति समाज जिला -अध्यक्ष ,जिला अलिराजपुर

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