साध्वी मंडल के सानिध्य में पर्युषण पर्व के अंतिम दिन संवत्सरी महापर्व जप-तप-त्याग-तपस्या से मनाया

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 रितेश गुप्ता @थांदला
आचार्य श्री उमेशमुनिजी के सुशिष्य प्रवर्तक जिनेन्द्रमुनिजी की आज्ञानुवर्तीनी साध्वी निखिलशीलाजी,दिव्यशीलाजी, प्रियशीलाजी, दीप्तिजी ठाणा – 4 पौषध भवन स्थानक पर चातुर्मास हेतु विराजित है।
साध्वी मंडल के सानिध्य में पर्युषण पर्व पर ज्ञान,दर्शन,चारित्र एवं तप की विशिष्ट आराधना में श्रावक-श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।साध्वी मंडल के सानिध्य में प्रतिदिन राईय प्रतिक्रमण,प्रार्थना,अंतगड़ सूत्र का वांचन,व्याख्यान,दोपहर में कल्पसूत्र का वांचन,प्रतियोगिता एवं ज्ञान चर्चा,शाम को देवसिय प्रतिक्रमण,चौवीसी आदि विविध धर्माराधनाए सम्पन्न हो रही है।संवत्सरी महापर्व पर श्रावक वर्ग का प्रतिक्रमण दौलत भवन(महिला स्थानक)पर एवं श्राविकाओं का प्रतिक्रमण पौषध भवन पर हुआ।

धर्मसभा को संबोधित करते हुए साध्वी निखिलशीलाजी ने फरमाया की पर्युषण पर्व का आज आठवां दिन है यह पर्व का शिखर दिवस है।जिस प्रकार मंदिर पर शिखर हो तो ही वह पूर्ण होता है उसी प्रकार पर्युषण पर्व का शिखर दिवस संवत्सरी महापर्व है इसी से हमारी आराधना पूर्ण होती है।संवत्सरी महापर्व के तीन विशेष कार्य है- पौषध,आलोचना एवं प्रतिक्रमण।
पौषध अर्थात एक दिन के साधुत्व का अभ्यास।आत्मा का पोषण करना।दूसरा कार्य आलोचना।आलोचना अर्थात निन्दा।किसकी निन्दा?स्वयं की निन्दा या स्वयं की आलोचना।हमारे द्वारा वर्ष भर में हुए अशुभ कार्यो का चिंतन करके उनकी आलोचना करना।तीसरा महत्वपूर्ण कार्य प्रतिक्रमण।प्रतिक्रमण अर्थात आत्मिक दोषों से पीछे हटना।दोष लगे या न लगे परंतु भगवान की आज्ञा है प्रतिक्रमण अवश्य करना चाहिए।चतुर्विध संघ प्रतिदिन पाक्षिक,चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करते है परन्तु संवत्सरी प्रतिक्रमण का महत्व विशेष होता है जिस प्रकार व्यापारी अपने वर्ष भर का लेखा-जोखा तैयार करता है उसी प्रकार संवत्सरी महापर्व वर्ष भर के दोषों का चिंतन कर उसका प्रतिक्रमण करने का पर्व है।आज के दिन क्षमा का विशेष महत्व होता है।संवत्सरी महापर्व के दिन सभी जीवों से क्षमा मांगना व उन्हें क्षमा प्रदान करना है।

*अंतगड़दसा सूत्र एवं श्रीमद धर्मदास पट्टावली का वांचन*
साध्वी प्रियशीलाजी द्वारा पर्युषण पर्व के आठों दिन अंतगड़दसा सूत्र का सुंदर वांचन किया गया।व्याख्यान के पश्चात आलोचना का सामूहिक पाठ किया गया जिसके पश्चात श्रीमद धर्मदास जी महाराज साहब की पट्टावली सुंदर वांचन भी किया गया।
श्री संघ अध्यक्ष जितेंद्र घोड़ावत,मंत्री प्रदीप गादिया व ललित जैन नवयुवक मंडल के अध्यक्ष कपिल पीचा एवं सचिव जितेंद्र सी घोड़ावत ने बताया कि संवत्सरी महापर्व पर श्री संघ के श्रावक-श्राविकाओं छोटे-छोटे बच्चों आदि द्वारा उपवास,एकासन,आयंबिल आदि तप की सुंदर आराधना की गई।साथ ही कई श्रावक-श्राविकाओं व बच्चों द्वारा पौषध,संवर की आराधना भी की गई।वही कई आराधक विभिन्न प्रकार की तप आराधना करते हुए अपनी आत्मा को भावित कर रहे है।
धर्मसभा में साध्वी निखिलशीलाजी के मुखारविंद से आरती श्रीश्रीमाल ने 15 उपवास,भावना शाहजी ने 10 उपवास,अमन कमलेश जैन ने 9 उपवास व शीला पीचा,सपना व्होरा,सपना रुनवाल,मिताली भंसाली,अंकित भंसाली,प्रदीप व्होरा,आयुष व्होरा,प्रवीण मेहता,विशाल घोड़ावत,धर्मेश मोदी,निकुंज गादिया,कमलेश छाजेड़ ने आठ-आठ उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये।
सभी तपस्वियों का बहुमान श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ,राजलबाई गादिया परिवार,प्रकाशचंद्र घोड़ावत परिवार,राकेश-प्रफुल्ल तलेरा परिवार,सुंदरलाल भन्साली परिवार द्वारा किया गया।व्याख्यान प्रभावना का लाभ राकेश-प्रफुल्ल तलेरा परिवार द्वारा लिया गया।

सामूहिक होंगे पारणे व स्वामीवात्सल्य-
श्री संघ कोषाध्यक्ष प्रकाशचंद्र शाहजी ने बताया कि संवत्सरी महापर्व के अगले दिन 12 सितंबर को सभी तपस्वी जिन्होंने एकासन,बियासन,आयंबिल,नीवी,उपवास या इससे अधिक की तपस्या की है उनके पारणे सामूहिक रूप से महावीर भवन पर बुद्धिलाल कांकरिया परिवार की और से होंगे।साथ ही श्री संघ का स्वामीवात्सल्य भी पारणे के पश्चात होगा जिसका लाभ कमलेश कुमार यतीश कुमार जैन(दाईजी) परिवार द्वारा लिया गया।

सामूहिक क्षमापना का आयोजन-
संवत्सरी महापर्व के अगले दिन 12 सितंबर को श्री संघ द्वारा सामूहिक क्षमापना का आयोजन पौषध भवन पर होगा।इसमे श्रावक-श्राविकाएँ यहाँ विराजित संयमी आत्माओं से क्षमायाचना करने के पश्चात एक-दूसरे से क्षमायाचना करेंगे।
सभा का संचालन श्री संघ सचिव प्रदीप गादिया ने किया।

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