इस वर्ष भी प्रवास पर नही आए अतिदुर्लभ पक्षी खरमौर; तरस गई वन विभाग आंखे .. …

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सलमान शैख@ झाबुआ Live

अच्छे मानसून और बारिश का इन्तजार हम लोगों को ही नहीं होता, पशु-पक्षियों को भी बारिश का बेसब्री से इन्तजार रहता है। बारिश के मौसम में ज्यादातर पक्षियों के लिये प्रजननकाल भी होता है। अवर्षा और अल्प वर्षा का असर इनकी संख्या पर भी पड़ता है। बारिश पर्याप्त होने से इनकी तादाद बढ़ती है। जैव विविधता की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है।
अब खरमोर को ही लीजिए, दूर-दूर तक फैली घास की बीड और बरसात का सुहाना मौसम इन्हें खासा रास आता है इसीलिये कई सदियों से मध्य प्रदेश के कुछ खास जंगलों में खरमोर हजारों मील का फासला तय कर आते रहे हैं, लेकिन इस बार मप्र के झाबुआ जिले के पेटलावद के मोरझरिया गांव में वन विभाग के अमले की आंखे तरस गई लेकिन खरमौर नहीं आए। बीते दस वर्ष के दौरान यह दूसरा मौका है, जब बारिश बीत जाने का समय नजदीक आने तक एक भी खरमौर क्षैत्र में नहीं पहुंचा। ऐसे में वन विभाग का अमला भी अब इस सोच में डूबा हुआ है कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो इस बार एक भी पक्षी यहां पर नहीं आया।
गौरतलब है कि पेटलावद क्षैत्र के मोरझरिया के जंगलो में लाखो रूपए खर्च कर एक घांस का मैदान बनाया गया है। जहां वर्ष 2009 में पहली बार खरमोर विचरण के लिए यहां आए थे। यहां दुर्लभ प्रजातिक के खरमौर को देखने को यहां वन विभाग ने अपने चोकीदार की नियुक्ति भी कर रखी है। इसके साथ ही विभाग का अमला भी यहां होने वाली हर हरकत पर नजर रखता है लेकिन इस वर्ष क्षेत्र में बेहतर बारिश होने के बाद एक भी पक्षी का नहीं आना चिंता का विषय है। सामान्य तौर पर बारिश के शुरुआत के महीने में जुलाई-अगस्त माह तक खरमौर क्षेत्र में देखे जा चुके है लेकिन इस वर्ष अब तक उक्त पक्षी की किसी प्रकार की हलचल का आभास भी नहीं हुआ है।
कब-कब आए खरमोर-
वन विभाग के आंकड़ो के मुताबिक 11 वर्ष पहले यानि वर्ष 2009 में पहली बार पेटलावद क्षैत्र में खरमोर पक्षी देखे गए थे। मालवा क्षैत्र में ग्रामीण इसे भटकुकड़ी नाम से भी पहचानते है। इसके पहले 2010 में 3 खरमोर जोड़े यहां आए थे। उसके बाद कुछ वर्ष पहले वन परिक्षैत्र पेटलावद के मोरझरिया, बाछीखेड़ा व तारखेड़ी के जंगलो में 10 जोड़े यहां विचरण के लिए आए थे। इसके बाद 2014 में भी एक खरमोर नजर आया। 2015 से लेकर 2017 तक एक-दो खरमोर ही दिखाई दिए थे। 2018 में 4 जोड़े विचरण के लिए यहां आए थे। इसके बाद वर्ष 2019 में भी एक खरमोर यहां पहुंचा था, लेकिन वर्ष 2020 से लेकर इस वर्ष अब तक एक भी खरमोर नजर नही आया हैं। अमूमून वर्षा ऋतु में प्रजनन के लिए इनका यहां आगमन होता है। इन्हें उंची घांस ज्यादा पसंद आती है। तीन माह बाद यह पक्षी अज्ञात स्थान पर लौट जाता है, जिसका पता आज तक नहीं लग सका।
ब्रिडिंग के लिए आते है-
एशिया और भारत के विभिन्न स्थानों से जून-जुलाई में जिले के पेटलावद क्षेत्र में आने वाले खरमोर पक्षी सितम्बर अंत से लेकर अक्टूबर की शुरुआत में लौट जाते हैं। अंडे देने के लिए यहां का वातावरण इन पक्षियों के लिए अनुकूल माना जाता है। अक्टूबर तक इन प्रवासी पक्षियों के बच्चे दो महीने के हो जाते हैं। बच्चे जैसे ही उड़ने योग्य हो जाते हैं खरमोर पक्षी पुराने स्थान पर लौट जाते हैं। खरमोर पक्षी ब्रिडिंग के लिए आते हैं। इन्हें बारिश का मौसम और ओपन ग्रास लेंड चाहिए। इसलिए ये पक्षी यहां आते हैं। जब घास बड़ी हो जाती है तो बच्चे यहां टिकते नहीं है, इसलिए मादा इन्हें लेकर संभवतः दक्षिण भारत की ओर चली जाती है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, गुजरात, राजस्थान, केरला, तमिलनाडु, कर्नाटक में खरमोर पक्षी पाए जाते हैं। ये पक्षी एक प्रकार से यह भारतीय उपमहाद्वीप का भी पक्षी है।
शर्मीले स्वभाव का पक्षी-
अभी तक खरमोर को कम ही लोग कैमरे में कैद कर पाए हैं। हालांकि अब संख्या बढ़ने से इसकी संभावना बढ़ गई है। ये अत्यतं शर्मीले स्वभाव वाला पक्षी है। ये पक्षी गुजरात, राजस्थान के पश्चिमी क्षेत्र और प्रदेश के सैलाना व झाबुआ-धार क्षेत्र में कुछ संख्या में है। सुन्दर सुराहीदार गर्दन और लम्बी पतली टांगों वाले खरमोर की ऊँची कूद देखने लायक होती है। मादा पक्षी को आकर्षित करने के लिये एक बार में नर पक्षी 400 से 800 बार तक कूदता है। वन अधिकारी बताते हैं कि इन पक्षियों को जरा–सी भी दखलंदाजी पसंद नहीं हैं। इन्हें अहसास भी हो जाए कि कोई देख रहा है तो छिप जाते हैं।
खरमोर न आने का कारण; मिला होगा अच्छा जंगल-
वन परिक्षेत्राधिकारी शीतल कवाचे ने बताया पेटलावद वन क्षैत्र से भी अधिक अच्छा स्थान इन पक्षियों को मिला होगा। इसलिए इस बार अगस्त का माह भी पूरा होने को आया है, लेकिन इनका आगमन अशातीत संख्या में नही हो पाया है। खरमोर को कम दूरी में अच्छा स्थान मिला होगा। वहीं इसके पीछे बरसात में देरी और घांस की उचित मात्रा में बढ़ोतरी नही होना भी कारण बताया जा रहा हैं। मोरझरिया के आसपास के ग्रामीणों ने भी हमें बताया है कि खरमोर मोरझरिया में पहुंचे है, उनकी बातो पर हमारे द्वारा लगातार माॅनिटरिंग और सर्चिंग अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन अभी तक हमारी टीम को खरमोर नही दिखा हैं। जिससे यह कहा जा सकता है कि क्षैत्र में खरमोर पक्षी इस बार प्रवास पर नही आए हैं।

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