इंदौर हाईकोर्ट के फैसले मे छलका “जज” का दर्द; आदेश मे लिखा – दुष्कर्म रोकने के लिए मौजूदा कानून नाकाफी…

0

नवनीत त्रिवेदी@ झाबुआ Live

खास बिंदु
झाबुआ मे जनवरी 2021 मे दर्ज नाबालिग लडकी से नाबालिग लडके दवारा जघन्य तरीके से दुष्कर्म मामले मे जमानत याचिका खारिज करते हुऐ इंदौर हाईकोर्ट के जज सुबोध अभयंकर ने दिया फैसला।

फैसले मे दुष्कर्म के मौजूदा कानुन को नाकाफी ओर 16 साल से कम आयु के अपराधियों को जघन्य अपराधों के लिऐ छुट देने वाला बताया।

हाईकोर्ट जज ने आदेश मे की टिप्पणी लिखा कि इस देश के सासंदों की चेतना को.झकझोरने के लिए कितनी निर्भयाओ को ओर अपनी बलि देनी होगी।

आदेश की प्रति भारत सरकार के विधि सचिव ( कानूनी मामलों ) को भेजने को कहा ।

झाबुआ की एक नाबालिग लडकी से हुुुए दुष्कर्म के माममे मे नाबालिग आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए इंदौर हाईकोर्ट ने अपने आदेश मे देश मे नाबालिग आरोपियों के लिए मौजूदा कानून को नाकाफी बताते हुऐ अपने आदेश मे लिखा कि विधानमंडल ने निर्भया मामले से भी कोई सबक नही सीखा है ..

दरअसल इंदौर हाईकोर्ट के जज “सुबोध अभयंकर” जनवरी 2021 मे झाबुआ पुलिस कोतवाली के अंतर्गत आंबा पीथमपुर” गांव मे एक नाबालिग लडकी से 15 साल के एक किशोर दवारा तीन दिनो मे दो बार दुष्कर्म किये जाने ओर इस अपराध मे पीडिता के निजी अंगो के बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाने के बाद पीडिता को आपरेशन के बाद सुरक्षित किया जा सका था ..

इस मामले मे जमानत याचिका को खारिज करते हुए इंदौर हाईकोर्ट के जज सुबोध अभयंकर” ने अपने आदेश मे लिखा कि ” इस न्यायालय को यह दर्द है कि विधानमंडल ने अभी भी निर्भया के मामले में कोई सबक नहीं सीखा है, जिसे (2017) 6 एससीसी 1 (मुकेश बनाम राज्य एनसीटी दिल्ली) के रूप में रिपोर्ट किया गया है। 2015 के अधिनियम की धारा 5 के तहत जघन्य अपराधों में एक बच्चे की उम्र अभी भी 16 साल से कम रखी गई है, जिसमें 16 साल से कम उम्र के अपराधियों को जघन्य अपराध करने की छूट दी गई है। इस प्रकार, जाहिर तौर पर, एक जघन्य अपराध करने के बावजूद, याचिकाकर्ता पर केवल एक किशोर के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा, क्योंकि उसकी उम्र 16 वर्ष से कम है, जैसा कि 2015 के धारा 15 अधिनियम के तहत प्रदान किया गया है। जाहिर है, ऐसे मामलों से निपटने के लिए वर्तमान कानून है पूरी तरह से अपर्याप्त और सुसज्जित नहीं है और यह न्यायालय वास्तव में आश्चर्यचकित है कि इस देश के सांसदों की चेतना को झकझोरने के लिए और कितने निर्भयाओं के बलिदान की आवश्यकता होगी.”

हाईकोर्ट ने अपने आदेश मे लिखा कि उनके इस आदेश को भारत सरकार के विधी सचिव ( कानूनी मामलो ) को भी भेजा जाये ..देश के सांसदों की चेतना पर हाईकोर्ट के इस आदेश मे लिखित मे सवाल उठाया गया है अभी तक देश की शीर्ष अदालते सुनवाई के दौरान तीखी टिप्पणियां करती आई है लेकिन अपने आदेश मे ही तीखी टिप्पणी कर हाईकोर्ट ने देश के मौजूदा कानून पर सवाल तो खडे कर ही दिये है ।

Leave A Reply

Your email address will not be published.