विगत माह महामारी की विभीषिका देख कर भी नहीं चेते लोग, बाजारों में बढी भीड़, बगैर मास्क के घूम रहे लोग

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मयंक विश्वकर्मा, आम्बुआ

कोरोना महामारी ने सारे विश्व में तांडव मचा रखा है इस बीमारी की प्रथम लहर में जितनी तबाही नहीं मचाई थी उससे अधिक दूसरी लहर ने क्षेत्र में तबाही मचा दी कई परिवार अपनों को असमय खो चुके तो कई ठीक हो जाने के बावजूद अभी तक शारीरिक रूप से परेशान है। इसके बावजूद लॉकडाउन से छूट मिलते ही बाजारों, शादी विवाह तथा अन्य आयोजन में उमड़ रही भीड़ जैसे तीसरी लहर को निमंत्रण देती दिखाई दे रही है। शासन प्रशासन ने अपना कार्य कर दिया अब जबकि लोगों को स्वयं संभलना है तो बेकाबू होकर भविष्य में पुनः महामारी को आमंत्रित करते दिखाई दे रहे हैं।

मुंह से उतरा मास्क- कोरोना से बचाव हेतु मुंह पर मास्क बांधना जरूरी माना जा रहा है ताकि हवा में तैरते संक्रमण के कीटाणु मुंह तक तथा नाक के माध्यम से शरीर में प्रवेश ना कर सके मगर देखा जा रहा है कि लॉकडाउन से अनलॉक होते ही क्षेत्र के बाजारों में बेतहाशा भीड़ बढ़ रही है। दुकानों यात्री बसों बैंक तथा कियोस्क सेन्टरों शादी विवाह समारोह उचित मूल्य की दुकानों अस्पतालों आदि में जो भीड़ देखी जा रही है ।उसमें 80% से भी अधिक लोग बगैर मास्क के देखे जा सकते हैं इस भीड़ में शारीरिक दूरी कोई मायने नहीं रखती है जिस कारण संक्रमण फैलने का भय बना हुआ है । क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश लोगों ने कोरोना का टेस्ट नहीं करवाया है लिहाजा कौन संक्रमित है और कौन नहीं है इसका पता चलना मुश्किल है ।ऐसी स्थिति में यदि कोई एक भी संक्रमित इस भीड़ में घुसा तो स्थिति क्या होगी ।यह सोचा जाना चाहिए दुकानों पर ग्राहक तथा दुकानदार, बसों में सवारियों के साथ ही चालक परिचालक तथा क्लीनर तथा अन्य सार्वजनिक स्थलों पर मास्क पहनने की अनिवार्यता समाप्त हो गई है ।शासन प्रशासन में लॉकडाउन के समय सख्ती दिखाई दिखा कर स्थिति को नियंत्रित किया।मगर अब जबकि जनता की अपनी सुरक्षा स्वयं करने की बारी है तब कोई ध्यान नहीं देना महामारी की तीसरी लहर को पीले चावल देकर आमंत्रित करने जैसा है जिसका असर कुछ समय बाद दिखाई देने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। इसलिए 2 गज की दूरी मास्को जरूरी का ध्यान रखना भी जरूरी माना जाना चाहिए।

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