बीजेपी भी चली कांग्रेस के रास्ते , आलाकमान तय करेगा मंडल ओर जिला अध्यक्ष के नाम

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झाबुआ लाइव स्पेशल रिपोर्ट

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कहने को बीजेपी अपने आपको सबसे हाईटेक ओर सबसे ज्यादा अनुशासित पार्टी कहती है ओर लोकतात्रिक व्यवस्था संगठन मे होने का दावा करती है लेकिन इस बार संगठन चुनावों मे जो कुछ भी हो रहा है उससे यह साबित कर दिया है  कि हाथी के दांत खाने के अलग ओर दिखाने  के अलग होते है । इस पड़ताल से समझिए संगठन चुनाव मे बीजेपी मे आखिर  देरी क्यो हो रही है ।

8 से 22 हो गयी मोय॔ साहब !

प्रदेश बीजेपी को 8 दिसंबर को अपने 11 मंडल अध्यक्षों की सूची की घोषणा करनी थी मगर आज 22 दिसंबर हो जाने के बावजूद भी बीजेपी अपने मंडल अध्यक्षो के नामो पर मुहर नही लगा सकी है बीजेपी ने लोकसभा उपचुनाव  परिणाम के बाद बदले हुऐ हालातो को देखते हुए यह भोपाल मे स्वीकार किया  था कि संगठन की कुछ कमजोरियो के चलते हम हारे है इसके लिए बीजेपी ने यहां अरविंद मेनन के बेहद करीबी ओर झाबुआ में रह चुके ” भाजयुमो ” के प्रदेश अध्यक्ष ” अमरदीप सिंह मोय॔” को जिला निर्वाचन अधिकारी ( बीजेपी ) बनाया  था परंतु उन्हें भी खींचतान के चलते देरी हो रही है इसलिए कई बहाने बनाए गये लेकिन अब हो रही देरी ने साफ कर दिया है कि बीजेपी मे संगठन चुनाव को लेकर सब ठीक ठाक नही है तभी यह देरी हो रही है ।

गैर आदिवासी नेताओ को मिलेगा संगठन मे महत्व

झाबुआ लाइव को प्राप्त जानकारी के अनुसार इस देरी की एक वजह यह है कि भोपाल से मोय॔ ओर संभागीय संगठन मंत्री ” शैलेंद्र बरुआ” जी को निर्देश नही मिले थे अब बताया  जा रहा है कि संगठन की प्रदेश इकाई ने यह गाईड लाइन दे दी है कि इस आदिवासी जिले मे सत्ता अगर आदिवासी समाज के नेताओ के पास है जैसे विधायक / मंडल अध्यक्ष / नगर पालिका / कोपराटीव सोसायटी / जनपद आदि तो फिर संगठन के 11 मे से अधिकांश पद गैर आदिवासी नेताओ को दे दिया जाये ताकी बैलेंस बना रहे ओर शायद यही फार्मूला बीजेपी जिला अध्यक्ष को लेकर बना है ।

बडा सवाल ? अगर नाम ऊपर से तय होना था तो नीचे लोकतंत्र की नौटंकी क्यो ?

अब जब यह तय हो चुका है कि बीजेपी के मंडल ओर जिला अध्यक्ष के नामो का एलान बीजेपी का संगठन (  प्रदेश -एवं- संभाग स्तरीय ) तय करेगा तो बीजेपी के दावेदारो ओर उनके समर्थकों के बीच से यह सवाल दबी जुबान से उठने लगे है कि कांग्रेस के तज॔ पर सब कुछ ऊपर से ही तय  करना था तो नीचे स्तर पर रायसुमारी या तीन तीन नाम लेने ओर सक्रिय कार्यकर्ताओं से राय लेने की नौटंकी आखिर क्यो की गई ? इसका जवाब शायद बीजेपी के पास नही है ओर जवाब शायद यह बनता है कि जब कुनबा बडा हो जाता है तो उसे संभालना चुनौतीपूण॔ तो होता है साथ मे बीजेपी यह हाजिर जवाब भी दे सकती है कि बडा दल या परिवार है छोटी मोटी बाते चलती रहती है बत॔न जब ज्यादा होंगे तो आपसे मे खटकेंगे ही ना ।।

 

 

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