जैन समाज मे खुशियां छाई,  पूण्य सम्राट की प्रतिमा के नगर प्रवेश पर गुलाल से खेली होली

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 पारा। जिनका आशीर्वाद सदैव पारावासियों पर रहा। ऐसे पूण्य सम्राट की प्रतिमा का नगर प्रवेश बेंड-बाजो एवं ढोल ढमाको के साथ गुलाल की होली खेलते हुए करवाया गया। वर्तमान गच्छाधिपति नित्यसेन सूरीश्वर द्वारा दिये गए मुहूर्त में चातुर्मास हेतु विराजित साध्वी भगवंत चारित्र कला श्रीजी मसा की निश्रा में सम्पूर्ण आयोजन सम्पन्न हुआ।

पूण्य सम्राट की प्रतिमा के साथ अन्य सभी प्रतिमाओं को तिलक करने का लाभ प्रकाश तलेसरा, बधाने का लाभ राजेन्द्र पगारिया परिवार द्वारा लिया गया। राकेश पगारिया परिवार ने प्रतिमाओं के रथ में साथ बैठने तथा मंदिर जी पहुंचने पर पुंजने का लाभ लिया। पूण्य सम्राट की प्रतिमा को मेहमान स्वरूप मंदिर जी मे विराजमान करवाने का लाभ नाहटा परिवार द्वारा लिया गया। वही पांच पूजन में से पहली पूजन का लाभ वाली बाई छाजेड़ , दूसरी पूजन का लाभ प्रकाश छाजेड़, तीसरी पूजन का लाभ सुरेश कोठारी, चौथी पूजन का लाभ राकेश पगारिया तथा अंतिम पूजन का लाभ छजलानी परिवार द्वारा लिया गया। प्रतिमा के विराजमान होने के बाद अष्ट प्रकारीय पूजन का लाभ प्रकाश तलेसरा परिवार द्वारा लिया गया। वहीं पहली आरती का लाभ मनोज भंडारी परिवार ने लिया। जयंत नगरी बिना जयन्त के सुनी थी। पूज्य साध्वीजी भगवंत ने कहा की जैसे श्रीराम 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या पधारे थे ठीक उसी तरह वर्षो के इंतज़ार के बाद पारा में पूण्य सम्राट प्रतिमा स्वरूप में पधारे हैं। साध्वी भगवंत ने पूण्य सम्राट के गुणों का बखान करते कहा कि चार गुणों से व्यक्ति महान बनाता है। जिसमे नाम, स्थापना, भाव तथा द्रव्य होता है। देवलोक के 7 वर्ष के बाद भी जिनके नाम के लोग जाप करते हैं ऐसे गुरु के भाव से आप सभी परिचित हैं। ऐसे ही पूण्य सम्राट की स्थापना हो रही है और पुण्य सम्राट द्रव्य स्वरूप में देवलोक से ये पारा का दृश्य देख रहे होंगे। प्रतिमाओं को लेकर निकली शोभायात्रा में पूण्य सम्राट के जयकारे के साथ समाजजन नृत्य करते चल रहे थे। साध्वीजी भगवंत के मांगलिक के बाद कार्यक्रम का समापन हुआ। इसके बाद स्वामिभक्ति का आयोजन किया गया। प्रसादी स्वरूप मोतीचूर के लड्डू का वितरण किया गया। वहीं सम्पूर्ण नगर में मिठाई वितरित की गई।

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