नगरीय क्षेत्र की शासकीय स्कूल में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को तीन साल से नहीं मिली गणवेश ना ही खाते में राशि आई

आरिफ हुसैन, चंद्रशेखर आजाद नगर

सरकार की ओर से विद्यार्थियों को हर साल मिलने वाली गणवेश अब तक नहीं मिल पाई है। ना तो उन्हें सिली हुई गणवेश स्कूल की ओर से दी गई और ना ही उनके या पिता के खाते में गणवेश की राशि आई। यह स्थिति लगभग तीन साल से बनी हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि विद्यार्थियों के हक की गणवेश या फिर उसकी राशि कहां गोलमाल हो गई। 

चंद्रशेखर आजाद नगर में एक देश दो विधान का काम अधिकारियों के द्वारा किया जा रहा है। पहले तो बिना सत्यापन के रेडीमेड ड्रेस ग्रामीणों की स्कूल में वितरण कर दी गई। वहीं नगरीय क्षेत्र की स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिलने वाली ड्रेस 3 वर्षो से अब तक नहीं मिली है। ना ही पालकों के खातों में राशि डाली गई है। कन्या हाई स्कूल में पढ़ने वाली बालिकाओं ने बताया कि कक्षा 7वीं से लेकर 8वीं तक हमें ड्रेस नहीं मिली है। मेरे पिताजी ने बाजार से कपड़ा खरीदा और यूनिफार्म सिलवा कर दी।

शासकीय प्राथमिक विद्यालय पोची इमली के विद्यार्थी को भी गणवेश नहीं मिल पाई है।

ये बोली छात्राएं

कन्या स्कूल चंशेआ नगर में कक्षा 8वीं की छात्रा बंसरी भूरिया ने बताया कि वह कक्षा 6ठी से यहां पढ़ रही है। बाजार से ही ड्रेस सिलवाई है। कक्षा 6ठी से इसी स्कूल में पढ़ाई कर रही गुनगुन और ज्योति ने बताया कि हमने भी बाहर से गणवेश सिलवाई। उनके पिता सुरमिया बामनिया का कहना है दोनों बेटी अब 8वीं कक्षा में आ गई है, तीन साल में एक बार भी खाते में भी गणवेश के रुपए नहीं आए। छात्रा हेमलता और नेहा के पिता सरदार जमरा ने कहा उन्हें भी गणवेश के रुपए नहीं मिले। 

शासकीय विद्यालय भूराघाट के बच्चे को भी गणवेश नहीं मिली है।

कमीशन का खेल, देखने वाला कोई नहीं

गणवेश के खेल में सब झोल झाल किया जा रहा है। आदिवासी बाहुल्य जिला आलीराजपुर शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा हुआ है। अधिकारी स्कूलों में दी जाने वाली गणवेश हो या अन्य सामग्री हो सभी में कमीशन और बंदरबाट कर अपनी जेब भरने में लगें हुए है। पर किसी का इस ओर ध्यान आकर्षित नहीं या बच्चों के साथ हो रहे शोषण और उनके जीवन में कोई बदलाव परिवर्तन लाने वाला कोई अधिकारी ये नहीं सोचता कि इन्हें अच्छे मटेरियल वाली ड्रेस मिले और जिले का शिक्षा के क्षेत्र में नाम रोशन हो और आलीराजपुर जिले का पूरे देश में नाम रोशन हो। ऐसा कोई करना नहीं चाहता बस उन्हें तो अपना कमीशन मिलना चाहिए। गणवेश को लेकर विपक्ष भी कमजोर नजर आ रहा है। स्कूलों में दी जा रही  गणवेश या आदिवासी बच्चों के साथ हो रहे शोषण को लेकर कोई भी आवाज उठाने वाला नहीं है। 

एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालते रहे अधिकारी

मामले में अधिकारी भी पल्ला झाड़ते नजर आए। सहायक आयुक्त संजय परवाल, बीईओ वनोद कुमार कोरी, डीईओ व डीपीसी से चर्चा की गई। लेकिन तीनों ने जवाब देने की बजाए एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाली। बीईओ ने बीआरसी से बात करने को कहा। जबकि सहायक आयुक्त ने कहा 1 से लेकर 8 तक की स्कूल हमारे अंडर में नहीं आती। कक्षा 9 से लेकर 10 तक डीईओ देखते हैं। 11वीं से 12वीं तक हमारे अंडर में आता है। जब डीईओ व प्रभारी डीपीसी अर्जुन सिंह सोलंकी से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा मामले को जिला पंचायत देखती है, वही इस बारे में कुछ बता पाएंगे। उधर, मामले में जब एनआरएलम के जिला प्रबंधक मुकेश शिंदे से चर्चा की गई तो उन्होंने कहा हम ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत काम करते हैं। ये मामला एनयूएलएम के अंतर्गत आता है, ये वही बता पाएंगे।

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